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मर्दों की इस दुनिया में …

amanatein (Rajpoot)
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क़िस्सा लगभग 2, 3 महीने पहले का है,रोजाना की तरह जब मैं अपने बस स्टॉप पर पहुंची तो साइड में हाथ पैर फेलाए मैंने एक आदमी को ज़मीन पर पड़े देखा. उसकी हालत से ठीक ठीक मालूम हो रहा था कि जनाब सर से पाँव तक शराब में डूबे हैं। हुलिया बता रहा था की कामकाजी आदमी है, क्यूंकि बैग कहीं पड़ा था, जूते कहीं, पैसे कहीं और मोबाइल कहीं। बीच बीच में जागकर किसी का नाम भी ले रहे थे, जो शराब में लडखडाती ज़बान की वजेह से कुछ समझ नहीं आ रहा था। हालत देखकर तरस भी आ रहा था क्यूंकि में सोच रही थी कि शायद किसी दोस्त ने जबरन पिला दी हो। दिल में जब भी उसकी मदद करने का ख्याल आया यही सोचती रह गयी कि बात समझाने और समझने में ही वक्त न निकल जाये। लेकिन दिल में डर भी था, क्यूंकि मुझे हमेशा शराबियों से बहुत डर रहा है। सो मैं सोच रही थी अगर इसने कोई उलटी सीधी हरकत की तो उल्टा मैं मदद करने की बजाये कहीं 2,4 मुक्के उसे ठोंक न दूँ? इसीलिए में हमेशा से शराबियों को अनदेखा ही करती आई। बस स्टॉप पर लड़कियों और औरतों की काफी भीड़ थी पुरुष भी आ जा रहे थे. हर कोई उसे देखता और चलता बनता। कोई उसकी हालत पर हँसता तो कोई उसे तंज़ भरी नज़रों से देखता. एक लड़की जो कभी कभी उस शराबी की तरफ देखती और फिर सोच में पड़ जाती, उसे मैं लगातार नोट कर रही थी कि अचानक वह उसके करीब गयी और कुछ सोचते हुए सामने वाले जूस कॉर्नर के मालिक को मदद के लिए आवाज़ लगायी लेकिन वह नज़रंदाज़ कर गया. पास वाली चाय की दूकान पर कुछ लड़के खड़े थे एक को बुलाकर उसने उसे कुछ समझाया और उसने ठीक वैसा किया। शराबी आदमी का मोबाइल उठाकर उसके किसी परिचित को नम्बर डायल कर पूरी घटना बताई. इसके बाद लड़कों ने उस आदमी को सहारा देकर कुर्सी पर अन्दर बेठा लिया। उसके बाद क्या हुआ पता नहीं क्यूंकि हमारी बस आ चुकी थी और हम सब बे मुरव्व्तों की तरह सबकुछ देखते हुए भी अपने अपने घर चले गए थे . घटना को देखकर हंसी आ रही थी कि खुद को ताक़तवर समझने वाले मर्दों की इस दुनिया एक ताक़तवर मर्द कमज़ोर बना, बेहाल, बेहोश, अधमरा ज़मीन पर पड़ा सबकी नज़रों के तंज़ का शिकार था और बाकी ताक़तवर मर्द बेशर्मों की तरह अपने ही जैसे एक मर्द की मदद के लिए आगे नहीं बढे थे। इस मर्दों भरी दुनिया में इक भी ऐसा मर्द नहीं था जो उसकी जगह खुद को रखकर उसका दर्द महसूस करता? लेकिन शुक्र है उस खुदा का और भला हो उस लड़की का जिसने बेटी बनकर उसे उस पल एक बाप के रूप में देखा और शायद एक माँ बनकर उसे अपने बेटे के रूप में भी देखा हो….उसके दोनों ही रूपों में दुःख था ,दर्द था, और प्यार था ममता मयी. कैसा ताज्जुब है न इस अनजानी इंसानियत की डोर में बंधे दर्द पर? और शर्म महसूस हो रही थी मुझे इन ताक़तवर लेकिन अन्दर से खोखले मर्दों पर जो इन्ही बेटियों का चीर हरण तक करने में शर्म महसूस नहीं करते। लेकिन नाज़ है मुझे इन्ही बेटियों पर जो अपना फ़र्ज़ बखूबी जानती है. मर्दों की इस दुनिया में एक मर्द ही मर्द का नहीं जो सीना तानकर सारे जहाँ का ठेकेदार बनता फिरता है. आज वास्तव में अफ़सोस हो रहा ये जानकर कि औरत की मदद के लिए तो ये कभी तैयार है ही नहीं और तैयार नहीं है खुद की ज़ात के लिए भी।

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