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आज वह मुझे फिर मिली, पहले जैसे हालत में ही. इस वक़्त उसके हाथ में किसी की फेंकी गयी सुलगती सिगरेट का टुकड़ा है वह उसे मुंह में लेकर पीने का मज़ा ले रही है. जब मैंने उस दिन पहली बार देखा था उसे तब वह ज़मीन से चिक्केन पीस ( मांस का बचा हुआ टुकड़ा ) खा रही थी. हालत देखते ही महसूस हो रहा था, कि कई दिन की भूखी है. इकहरे बदन पर मटमैली साड़ी ,छोटे छोटे बिन धुले कतरन से बंधे बाल, पैरों में टूटी फूटी चप्पल और काँधे पे एक प्लास्टिक पोलिथीन जिसमें वह यहाँ वहां से बचा हुआ खाना उठाकर भरती जाती. चेहरा देखो तो जैसे हड्डियाँ बाहर आने को तैयार हैं, पेट पर नज़र पड़ी तो खाल हड्डियों से चिपकी हुई मिली, हड्डियाँ ही हैं, पेट तो है ही नहीं. उसको देखकर दया आना स्वाभाविक है, लेकिन अब मुझे शर्मिंदगी होने लगी है कि मैं उसके लिए अभी तक कुछ नहीं कर पाई? भाषा न जानने का अभाव हमारे बीच आ जाता है. लेकिन फिर सोचती हूँ जब भोजन भरा मेरा हाथ दयापूर्वक उसकी तरफ बढेगा उस पल भाषा नहीं भावनाएं काम करेंगी. वह मेरी सभी भावनाओं को समझ जाएगी. अत: अब मैं प्रतिदिन उसका इन्तिज़ार करने लगी हूँ. रोज़ उसी रास्ते से गुज़रते हुए मैं उसे तलाश करती. और एक दिन वह फिर मुझे मिली उस पल ऐसा लगा जैसे इश्वर ने उसे मेरे पास भेजा हो, कारन मैं एक दूकान से कुछ सामान खरीद रही थी तब वह अचानक दूकान के बाहर रखे कोल्ड ड्रिंक्स की खली झूठी बोतलों को मुंह से लगाकर पीने लगी जिनकी तली में झूठी कोल्ड ड्रिंक्स बची हुई थी. मैं उसे खाने को क्या दूँ? सोचते हुए दूकान में इधर उधर नज़र दौड़ाई और दूकान मालिक जो अन्दर सामान पैक कर रहा था का इन्तिज़ार करने लगी कि अचानक उस महिला के बराबर से २०-२१ वर्षीय युवक उसे देखते हुए निकल ही रहा था.कि वह महिला के हाव भाव देखकर उसकी सारी व्यथा पल में समझ गया एकाएक उसने माजा कोल्ड ड्रिंक उठाकर मुझे दूकान मालिक समझते हुए बोतल खोलने का इशारा किया, मैंने इशारे से उसे समझाया की मालिक अन्दर है. उसने मेरी बात समझे बिना सामने दीवार पर लटके हुए ओपनर से बोतल खोलकर उस महिला की तरफ बढाई,महिला ने मुस्कुराते हुए वः ले ली युवक ने फ़ौरन १० रुपये मेरे सामने रखे और कुछ कहा-मैंने उसे फिर समझाया क्षमा करें मालिक अन्दर हैं मैं यहाँ की मालिक नहीं हूँ, तब वह अन्दर जाकर पैसे देकर चलता बना और मेरी निगाह उस खुदाई फ़रिश्ते से जैसे हटना ही भूल गयी, मैं उसे लगातार जाता हुआ देख रही थी, कि अचानक वह भी पलटा और तब तक मुझे देखता रहा जब तक वह फ़रिश्ता भीड़ में कहीं गुम नहीं हो गया. मैं उसे रुकाकर उसका नाम पूछना चाहती थी, लेकिन बस वह बिना कुछ कहे अपने खुदाई अंदाज़ से मुझे सरशार( निहाल कर देना, भिगो देना) कर गया. अचानक महिला भी जाने लगी मैंने उसे आवाज़ दी थी मगर ट्राफीक के शोर में उसने सुना नहीं. मैंने जल्दी सामान पैक कराया, और उसके लिए भी खाने की चीजें पैक करा कर उस तरफ बढ़ गयी. मैं जानती थी वह मुझे अवशय ही मिल जाएगी, क्यूंकि मेरे ऑफिस के रास्ते से ही वह प्रतिदिन गुज़रती है. मैंने उसका पीछा किया वह १५-२० कदम की दूरी पर मुझे मिल गयी. खाने के पैकेट उसे पकड़ाते हुए मैंने उसके होंठो पर वही निश्छल मुस्कान देखी जो उसने उस युवक को बोतल पकड़ते समय दी थी, और अचानक वह फ़रिश्ता (युवक) मुझे उसकी मुस्कान में मिल गया, मैं मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गयी लेकिन न जाने क्यूँ फिर भी मुझे उस फ़रिश्ते का इन्तिज़ार आज भी है…
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