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मेरी वो बिंदिया…

amanatein (Rajpoot)
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हर जगह ओणम ही ओणम की बहार है, रोनक है हर घर में,बाज़ार में..पारंपरिक तरीके से मनाने की धूम है मेरे पुरे दक्षिण भारत में. हर कोई पारंपरिक साड़ी में नज़र आ रहा है तो कोई पारंपरिक धोती में. सभी के ऑफिस में इसे celebrate करने की होड़ सी मच गयी है जो हर साल होती है..हमारे ऑफिस में एक दिन तय कर लिया गया है..और पहली बार मैं भी क्रीम कलर की गोल्डेन बोर्डर वाली साड़ी में बनती, संवरती, इठलाती हुई आज ऑफिस पहुंची, क्यूंकि ओणम का त्यौहार केरल के चिंगम मासonam में आने वाल सबसे बड़ा व् प्रसिद्द त्यौहार है तो इसकी रोनक हर और देखी जा सकती है. इस त्यौहार की सबसे ख़ास बात ये है कि ये त्यौहार संपूर्ण दक्षिण भारत का त्यौहार है न की किसी धर्म विशेष के लोगों का. इसी सप्ताह अर्थात कल बुधवार को ये त्यौहार मुख्य व् पारंपरिक से मनाया जायेगा. हाँ तो जब मैं बन संवर कर ऑफिस पहुंची तब मेरी २ कुलीग पहले से ही वहां उसी रूप में गोल्डेन बोर्डर वाली साड़ी में मौजूद थीं. हम सभी एक दूजे की तारीफ़ कर रही थीं..कुछ देर बाद बाकी कुलीग्स भी आ गयी जिनके हाथों में ढेर सारे तरह तरह के फूल थे. हम सभी पारंपरिक साड़ी में बहुत सुन्दर दिख रहे थे .मुझे पहली बार साड़ी में देखकर सभी मुझे सुंदरी कहकर पुकार रहे थे. चमेली के फूलों का गजरा हम सभी ने अपने अपने बालों में सजा लिया था जो इसी त्यौहार का एक हिस्सा है, सभी के माथे रंग बिरंगे तिलक व् टीकों से चमक रहे थे. मैंने भी अपने माथे पर सफ़ेद रंग की दो प्यारी सी बिंदिया सजाई. और फिर शुरू हुई ओणम की पारंपरिक शुरुआत. हम सभी ने फूलों को तोड़कर अलग अलग किया और ऑफिस के एक designer ने एक सुन्दर डिजाईन तैयार कर उसे sketch से ऑफिस के फ़लूर (ज़मीन) पर खींच दिया. हम सभी ने मिलकर उसमें तरह तरह के तोड़े गये फूलों को भरना शुरू किया. २, ३ घंटे में सभी सभी ने उस डिजाईन को तैयार कर दिया जिस तरह हम होली के त्यौहार पर घर में रंगोली बनाते है ठीक उसी तरह. ढेर सारे फोटो भी लिए गये. इस दिन सभी लोग दक्षिण भारत का प्रसिद्द भोजन सदया खाते है जोकि ऑफिस की तरफ से हम सभी को ऑफर किया गया था. एक थाली में ८, ९ तरह की सब्जियां २ तरह की खीर केले के नमकीन व् मीठे स्वाद के चिप्स, पापड़, अचार साथ में दही व् मट्ठा भी फुल थाली से पेट भर गया. साधारण शब्दों में हम इसे ब्राह्ममण भोजन भी कह सकते हैं. कारन इसमें माँसाहारी कुछ भी नहीं होता. गीत – संगीत, नृत्य भी शामिल होता है जो ऑफिस में संभव नहीं था..शाम होते होते थोड़े थके मांदे सबकी घर वापसी हुई. मेरी वापसी के दौरान बस में मुझे पड़ोस वाली एक aunti मिल गयी, साड़ी में देखते ही बोली आज साड़ी पहना है बहुत सुन्दर दिख रही हो मुझे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए बोली. धन्येवाद के रूप में मैं केवल मुस्कुरा दी, अचानक वह फिर पलटी और बोली वह निकालो. मैंने अचम्भित होकर पूछा क्या? बोली बिंदिया हटा दो. और सुचमुच मेरा सब्र जवाब दे गया था सुनकर. उस पल गुस्सा, झुंझलाहट और ऐसी सोच पर अफ़सोस के सिवा मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था. किन्तु यदि कोई मेरी personal लाइफ में हस्तक्षेप कर मुझसे मेरा जीवन जीने का तरीका छीनना चाहे तब मैं ये कहाँ सह पाती हूँ ? और मैंने उन्हें उत्तर दिया..क्यूँ क्या हो जायेगा बिंदी लगाने से ? केवल बिंदी लगाने से मैं हिन्दू हो जाउंगी क्या? ये किसने कहा ? ऐसा कुछ नहीं होता और सारी बात तो दिल की है. यदि मैंने आपकी बात को दिल से नही निभाया केवल बिंदी हटा दी तब? एक और महिला जो उन्ही के साथ पूर्ण रूप से बुर्के में कट्टर दिख रही थी ने मेरी बात सुन सहमति के रूप में हाँ में गर्दन हिलाई किन्तु वह बिंदी का विरोध करने वाली जो स्वयं साडी पहनती है से कोई जवाब नहीं बन पड़ा. उस पल उनके अन्धविश्वास का भूत उतारने का नशा सा मुझ पे सवार था. मैंने आग में घी डालने का काम ये कहकर किया कि मैं कभी किसी के कहने पर नहीं चलती जो मन कहता है और सही लगता है वही करती हूँ. वह उत्तर देने की बजाये केवल मुस्कुरा कर रह गयी..बस स्टॉप पर उतरकर मैं उनकी सोच पर अफ़सोस करती जा रही थी और ऐसे कट्टर लोगों के लिए मन में कई सवाल उभर रहे थे. यदि आप इतने ही कट्टर है तो दुसरे धर्म के लोगों के साथ खान पान तो दूर की बात है आप उनकी दुकानों से खरीदारी बंद कर दीजिये..बकोल आप लोगों के आप एक दूजे का पहनावा पहनना छोड़ दो..हम भी तो देखें आखिर कट्टर लोग एक दूजे के सहयोग बिना कैसे जीवन जी पाते हैं? जो किसी भी जीवन/धर्म में सहयोग बिना संभव ही नहीं…

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