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हम बात कर रहें हैं दुनिया के सबसे घ्रणित कार्य की, जिसका नाम सुनते ही किसी की भी निगाहें शर्म से झुक जाएँ. वह है बलात्कार. ये एक एसा शब्द है जिसकी चर्चा होते ही शांत बेठे किसी भी व्यक्ति दिमाग व् दिल को कुछ पल के लिए अशांत कर देता है. शिलर नामक ज्ञानी ने क्या खूब कहा है की “वासना का पागलपन थोड़ी देर रहता है, किन्तु उसका पछतावा बहुत देर.” बहरहाल अभी तक के इस विषय से सम्बंधित किसी भी केस में कभी कोई जोर आज़माइश वाली चर्चा या दोषी को दंड अभी तक सुना नहीं गया.क्यूंकि दोषी अधिकतर सोने के बने घराने से या किसी बडबोले नेता का बेटा ही होता है. और अपने उ.प जैसे राज्ये में तो शायद ही कभी किसी अपराधी को पूर्णतया दंड मिल पाता हो? लेकिन इस बार कहानी की वास्तविकता एकदम उलट है. ये वास्तविकता है दक्षिण भारत के केरल राज्ये की, जहाँ के लोग अपने सीधे सादे व् सरल स्वभाव के कारन ही नहीं बल्कि यह राज्ये अपने सख्त उसूलों, नियमों व् कड़े क़ानून के लिए भी जाना जाता है. लगभग ६-७ माह पूर्व सुनने में आया था कि अपने पैर से विकलांग एक युवक ने एक युवती से बलात्कार किया. पहले तो सुनकर धक्का लगा लेकिन फिर मन में पत्रकारी सवाल भी पैदा हुआ कि एक विकलांग व्यक्ति इतना सक्षम कैसे हो सकता है? कुछ दिनों पहले कुछ लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि ट्रेन के उस डिब्बे में उन दोनों के सिवा कोई नहीं था जब ट्रेन इसे इलाके में पहुंची जहाँ मदद की कोई उम्मीद नहीं थी तब उस व्यक्ति ने काफी ऊँचाई से उस युवती को भी किसी बहाने गेट पर बुलाकर घने जंगल में धक्का दे दिया व् स्वयं भी कूद गया. जैसे तैसे उस व्यक्ति ने दुष्कृत्य कर युवती को मृत समझ वही जंगल में छोड़ चलता बना. न जाने वह वहां कितनी ही देर पड़ी तड़पती रही क्यूंकि जंगलों में भी इंसानों का बसेरा, आना जाना लगा रहता है ऐसे में युवती कुछ व्यक्तियों को अव्येवस्थित हालत में मिली. घटना मालुम पड़ते ही खबर पुरे इलाके में जंगल की आग की तरह फैल गयी. और लगभग पूरा इलाका वहां उमड़ पड़ा.काफी जद्दो जेहद के बाद लड़की ने उसी हालत में युवक की पहचान बताई, सुनकर एक बारगी यकीं होना मुश्किल था कि एक विकलांग और ये काम ?लेकिन होने को कुछ भी हो सकता है,घोर कलयुग जो है. और हैरत ये रही की दोषी उसी भीड़ में खुद वहां मौजूद खड़ा अपनी पहचान सुन रहा था. सुनते ही वह लोगों की नज़र से बच कर निकल गया. लेकिन लोगों ने तुरत फुरत चुस्ती दिखाते हुए युवती द्वारा बताये गये हुलिए से सम्बंधित व्यक्ति की तलाश शुरू कर दी, इसे पहले कि वह कहीं और भागता लोगों की मेहनत रंग लायी और उसे हाथों हाथ पकड़ लिया गया, क्रोधित भीड़ ने उसके साथ मार पीट भी की, फिर पुलिस के हवाले कर दिया गया.जहाँ उसने अपना गुनाह कुबूला. ये खबर पुरे इलाके सहित बाकी शहर व् आस पास के इलाकों में भी जा पहुंची.पत्रकारों ने बिना किसी लाग लपेट के और घटना को बिकाऊ बनाये बिना व् खुद बिके बिना अपनी ज़िम्मेदारी दिखाई. लोगों में इतना गुस्सा की कुछ तो कहते हैं की मेरा बस चले तो उसका एक हाथ और एक पाँव काटकर उसे जिंदा जीवन भर मरने तड़पने के लिए छोड़ दिया जाये कि जा तू जी ले. कुछ का कहना था की ट्रेन की पटरी पर उसकी गर्दन रखकर उसे मार देना चाहिए. दरअसल लोगों में इस बात का गुस्सा अधिक था की एक विकलांग व्यक्ति की इतनी हिम्मत कैसे हो गयी? उसने तो सभी का विश्वास डुबो दिया है विकलांग व्यक्तियों पर से. अब तो लोग इन विकलांग पर विश्वास तो दूर दया भी नहीं करेंगे. युवती का अस्पताल में मुफ्त इलाज चला और जब admit हुई तो मिलने वालों का तांता लग गया.. सहानुभूति पूर्ण जिससे जितना हुआ उसने दिल खोलकर उसकी भरपूर मदद की व् इंसानियत का फ़र्ज़ निभाया. जनता के क्रोध व् दबाव को देखकर सरकार ने दया वया का ड्रामा न दिखाते हुए दोषी को फँसी की सजा सुनाई है, अर्थात वह अभी भी जिंदा है और साँसे ले रहा है. पता नहीं कब मरेगा वह ? हमारा गुस्सा तो शायद शांत हो जाये लेकिन उस मासूम का गुस्सा शांत नहीं होगा और तडपती रहेगी उसकी आत्मा जब तक वेह मर नहीं जाता क्यूंकि वेह अब जिंदा नहीं …..
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